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महत्वपूर्ण आर्थिक शब्दावलियाँ
Important Economic Terms

1.मुदा अवमूल्यन (Money Devaluation) :

यह कार्य सरकार द्वारा किया जाता है। इस क्रिया से मुद्रा का केवल बाह्य मूल्य कम होता है। जब देशी मुद्रा की विनिमय दर विदेशी मुद्रा के अनुपात में अपेक्षाकृत कम कर दी जाती है, तो इस स्थिति को मुद्रा का अवमूल्यन कहा जाता है।

2.शून्य ब्याज ऋणपत्र (Zero Rated Deventure) :

इस श्रेणी के डिबेंचरों या बॉन्डों पर सीधे ब्याज नहीं दिया जाता, बल्कि इन्हें जारी करते वक्त कटौती मूल्य पर बेचा जाता है और परिपक्व होने पर पूर्ण मूल्य पर शोधित किया जाता है। जारी करने के लिए निर्धारित कटौती मूल्य के अंतर को ही ब्याज मान लिया जाता है।

3.रेंगती हुई मुद्रास्फीति (Creeping Inflation) :

मुद्रास्फीति का यह नर्म रूप है। यदि अर्थव्यवस्था में मूल्यों में अत्यंत धीमी गति से वृद्धि होती है तो इसे रेंगती हुई स्फीति कहते हैं। अर्थशास्त्री इस श्रेणी में एक फीसदी से तीन फीसदी तक सालाना की वृद्धि को रखते हैं। यह स्फीति अर्थव्यवस्था को जड़ता से बचाती है।

4.अवमूल्यन (Devaluation) :

मुद्रा की विनिमय दर में गिरावट आना जिसके कारण विदेशी मुद्राओं की इकाइयों के रूप में आंतरिक मुद्रा की कीमत कम हो जाती है जिससे निर्यात सस्ते व आयात महंगे हो जाते हैं।

5.अवस्फीति (Deflation) :

किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं की पूर्ति मुद्रा की पूर्ति से अधिक होती है, तो वस्तु की कीमत में गिरावट आती है, इससे मुद्रा का वास्तविक मूल बढ़ जाता है, परंतु इस दशा में कीमतों में गिरावट होने से वस्तुओं के उत्पादन में गिरावट होती है और कम उत्पादन होने से रोजगार में भी गिरावट आने लगती है।

6.अग्रणी बैंक (lead bank) :

इस व्यवस्था की शुरुआत 1969 में की गई थी ,इसके तहत प्रत्येक जिले में किसी एक वाणिज्य बैंक को विशिष्ट कार्यक्रमों के संचालन विकास कार्य के लिए ऋण प्रदान करने वित्तीय संस्थाओं के बीच समन्वय का कार्य सौंपा जाता है।

7.टैक्स हेवंस (Tax havens) :

वह देश जहां विदेशी निवेशकों से बहुत कम दर पर आय कर और निगम कर वसूला जाता है, जिसका उद्देश्य विदेशी पूंजी को आकर्षित करना होता है।

8.पूर्ति का नियम (Law of Supply) :

इस नियम के अनुसार कीमत तथा पूर्ति में प्रत्यक्ष संबंध होता है अर्थात कीमतों में वृद्धि उत्पादकों को वस्तुओं की पूर्ति बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है तथा कीमत में कमी वस्तुओं की पूर्ति में कमी करने के लिए बाध्य करती है।

9.ब्रिज लोन (Bridge loan) :

कंपनीयों द्वारा अंतरिम अवधि के लिए बैंकों से लिया जाने वाला ऋण।

10.बैलेंस शीट (Balance sheet) :

किसी व्यापारिक संस्थान का वह लिखा पत्र जिसमें किसी निश्चित तिथि को उसके समस्त आस्तियों व देनदारियों को दिखाया गया है।

11.मोरेटोरियम (Moratorium) :

कानून द्वारा ऋणों के भुगतान को टालने की अवधि।

12.विमुद्रीकरण (Demonetization) :

सरकार द्वारा एकाएक पुरानी मुद्रा को समाप्त कर नई मुद्रा जारी करना विमुदीकरण कहलाता है, इस सफेद धन वाले तो अपनी मुद्रा बदल सकते हैं, परंतु काले धन वाले इसके लिए साहस नहीं कर पाते परिणाम तरह कालाधन अपने आप ही नष्ट हो जाता है।

13.साख संकुचन (Credit squeeze) :

मुद्रा स्थिति को रोकने के लिए केंद्रीय बैंकों द्वारा कम मात्रा में धन प्रदान करना जिससे बाजार में मुद्रा की मात्रा कम हो सके।

14.सस्ती मुद्रा (Cheap money) :

कम ब्याज दर पर प्राप्त की जाने वाली मुद्रा।

15.हवाला (Hawala) :

इसके तहत अपने देश में घरेलू मुद्रा में जमा की गई राशि को दूसरे देश में विदेशी मुद्रा में कुछ शुल्क अदा करके प्राप्त किया जा सकता है।

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