| क्रम संख्या | लोकोक्ति | अर्थ |
| 312 | बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल | श्रेष्ठ वंश में बुरे का पैदा होना |
| 313 | बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम | बेमेल बात |
| 314 | बूर के लड्डू जो खाए सो पछताए जो न खाय वह भी पछताय | ऐसा कार्य जिसको करने वाले तथा न करने वाले दोनों ही पछताते हैं |
| 315 | बेकार से बेगार भली | न करने से कुछ करना ही अच्छा है |
| 316 | बैठे से बेगार भली | खाली बैठे रहने से कुछ न कुछ काम करना भला होता है। |
| 317 | बैल का बैल गया नौ हाथ का पगहा भी गया | बहुत बड़ा घाटा |
| 318 | बोया गेहूँ उपजे जौ | कार्य कुछ परिणाम कुछ और |
| 319 | बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ ते होय | बुरे कर्मो से अच्छा फल नहीं मिलता |
| 320 | भइ गति साँपछछूँदर केरी | दुविधा में पड़ना |
| 321 | भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है | ईश्वर की जब किसी पर कृपा होती है तो उसे चारों ओर से लाभ ही लाभ होता है |
| 322 | भरी मुट्ठी सवा लाख की | भेद न खुलने पर इज्जत बनी रहती है। |
| 323 | भागते चोर की लंगोटी ही सही | सारा जाता देखकर थोड़े में ही सन्तोष करना |
| 324 | भागते भूत की लँगोटी ही भली | जहाँ कुछ न मिलने की आशंका हो वहाँ थोड़े में ही संतोष कर लेना अच्छा होता है। |
| 325 | भीख माँगे और आँख दिखावे | दयनीय होकर भी अकड़ दिखाना |
| 326 | भूख में किवाड़ पापड़ | भूख के समय सब कुछ अच्छा लगता है |
| 327 | भूखा सो रूखा | निर्धन मनुष्य में मृदुता नहीं होती |
| 328 | भूखे भजन न होय गोपाला | भूखा व्यक्ति धर्मकर्म भी नहीं करता |
| 329 | भेड़ की खाल में भेड़िया | जो देखने में भोलाभाला हो परन्तु वास्तव में खतरनाक हो। |
| 330 | भैंस के आगे बीन बजाना | मूर्ख को गुण सिखाना व्यर्थ है। |
| 331 | मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते | माँगी हुई वस्तु में कमी नहीं देखना चाहिए |
| 332 | मन के हारे हार है मन के जीते जीत | भारी से भारी विपत्ति पड़ने पर भी साहस नहीं छोड़ना चाहिए |
| 333 | मन चंगा तो कठौती में गंगा | यदि मन शुद्ध हो तो तीर्थाटन का फल घर में ही मिल सकता है। |
| 334 | मरता क्या न करता | विपत्ति में फंसा हुआ मनुष्य अनुचित काम करने को भी तैयार हो जाता है। |
| 335 | महँगा रोए एक बार सस्ता रोए बारबार | महँगी वस्तु केवल खरीदते समय कष्ट देती है पर सस्ती चीज हमेशा कष्ट देती है |
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