ऋचाओ के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है। इसमें 10 मंडल,1028 सुक्त एवं 10462 ऋचाएं हैं।
इस वेद के ऋचाओ के पढ़ने वाले ऋषि को होतृ कहते हैं। इस वेद से आर्यों के राजनीतिक प्रणाली, इतिहास एवं ईश्वर की महिमा के बारे में जानकारी मिलती है।
विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित गायत्री मंत्र है। इसके नवे मंडल में देवता सोम का उल्लेख है।
इस के आठवें मंडल की हस्तलिखित ऋचाओ को खिल कहा जाता है।
ऋग्वेद में इंद्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओ की रचना की गई है।
यजुर्वेद
सस्वर पाठ के लिए मंत्रों तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है। इसके पाठ करता को अध्वर्यु कहते हैं।
यजुर्वेद में यज्ञों के नियमों एवं विधि-विधानो का संकलन मिलता है।
इसमें बलिदान विधि का भी वर्णन है।
यह एक ऐसा वेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में है।
सामवेद
साम का शाब्दिक अर्थ है गान इस वेद में मुख्यतः यज्ञों के अवसर पर गाए जाने वाले ऋचाओ का संकलन है। इसके पाठकर्ता को उद्गाता कहते हैं। इसका संकलन ऋग्वेद पर आधारित है।
इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है
नोट- यजुर्वेद तथा सामवेद में किसी भी विशिष्ट ऐतिहासिक घटना का वर्णन नहीं मिलता।
अथर्ववेद
अथर्व ऋषि द्वारा रचित इस वेद में कूल 731 मंत्र तथा 6000 पद्य हैं। इसके कुछ मंत्र ऋग्वेदिक मंत्रों से भी प्राचीनतर है। अथर्ववेद कन्याओं के जन्म की निंदा करता है। इस वेद में सामान्य मनुष्यों की विचारों तथा अंधविश्वासों का विवरण मिलता है।
नोट - सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद एवं सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है। वेदों को भली-भांति समझने के लिए 6 वेदांगो रचना हुई यह है- शिक्षा, ज्योतिष, कल्प, व्याकरण निरुक्त एवं छंद।
नोट - पुराणों में मत्स्य पुराण सबसे प्राचीन एवं प्रमाणिक है।