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लोकोक्तियाँ और उनके अर्थ

क्रम संख्या लोकोक्ति  अर्थ
264 नौ दिन चले अढ़ाई कोस बहुत सुस्ती से काम करना
265 नौ नगद न तेरह उधार उधार की अपेक्षा नगद चीजें बेचना अच्छा होता है।
266 नौ सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली पूरी जिंदगी पाप करके अंत में धर्मात्मा बनना
267 पंच परमेश्वर पाँच पंचो की राय
268 पढ़े फारसी बेचे तेल यह देखो किस्मत या कुदरत का खेल पढ़ेलिखे लोग भी दुर्भाग्य के कारण दुःख उठाते हैं।
269 पर उपदेश कुशल बहुतेरे दूसरों को उपदेश देने में सब चतुर होते हैं
270 परहित सरिस धरम नहिं भाई परोपकार से बढ़कर और कोई धर्म नहीं
271 पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं परतंत्रता में कभी सुख नहीं

272 पराये धन पर लक्ष्मीनारायण दूसरे का धन पाकर अधिकार जमाना
273 पल में तोला पल में माशा अत्यन्त परिवर्तनशील स्वभाव होना
274 पहले पेट पूजा बाद में काम दूजा भोजन किए बिना काम में मन न लगना
275 पहले भीतर तब देवतापितर पेटपूजा सबसे प्रधान
276 पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं सब मनुष्य एक जैसे नहीं होते
277 पाँचों उंगलियाँ घी में होना हर तरफ से लाभ होना
278 पानी पीकर जात पूछना कोई काम कर चुकने के बाद उसके औचित्य पर विचार करना
279 पारस को छूने से पत्थर भी सोना हो जाता है सत्संगति से बुरे भी अच्छे हो जाते हैं

280 पिष्टपेषण करना एक ही बात को बारबार दोहराना
281 पीर बाबरची भिश्ती खर जब किसी व्यक्ति को छोटेबड़े सब काम करने पड़ें
282 पूछी न आछी मैं दुलहिन की चाची जबरदस्ती किसी के सर पड़ना
283 पूत के पाँव पालने में पहचाने जाते हैं बच्चे की प्रतिभा बचपन में ज्ञात हो जाती है।
284 पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं अच्छे गुणों के लक्षण बचपन में ही पता चल जाते हैं
285 पेट में आँत न मुँह में दाँत बहुत वृद्ध व्यक्ति
286 पैसा गाँठ का विद्या कंठ की धन और विद्या अपनी पहुँच के भीतर हों तभी लाभकारी होते हैं
287 प्यासा कुएँ के पास जाता है कुआँ प्यासे के पास नहीं आता जिसे गर्ज होती है वही दूसरों के पास जाता है।
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