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लोकोक्तियाँ और उनके अर्थ

क्रम संख्या लोकोक्ति  अर्थ
432 सौसौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली जीवनभर कुकर्म करके अंत में धर्मकर्म करना
433 स्वर्ग से गिरा तो खजूर में अटका एक विपत्ति से छूटकर दूसरी विपत्ति में फंसना
434 हँसी में खंसी हँसीदिल्लगी की बात करतेकरते लड़ाईझगड़े की नौबत आना
435 हँसुए के ब्याह में खुरपे का गीत बेमौका
436 हंसा थे सो उड़ गये कागा भये दीवान नीच का सम्मान
437 हज्जाम के आगे सबका सिर झुकता है अपने स्वार्थ के लिए सबको सिर झुकाना पड़ता है।
438 हड़ लगे न फिटकरी रंग चोखा ही आवे बिना खर्च किए काम बन जाना
439 हथेली पर सरसों नहीं जमती हर काम में समय लगता है कहते ही काम नहीं हो जाता

440 हनते को हनिए दोषपाप नहिं गनिए यदि कोई व्यक्ति ख़ाहमखाँ आपको या दूसरे को मारता है तो उसको मारना पाप नहीं है।
441 हम प्याला हम निवाला घनिष्ठ मित्र
442 हमने क्या घास खोदी है? जो मनुष्य स्वयं को बड़ा बुद्धिमान समझता है वह दूसरों से ऐसा कहता है।
443 हर कैसे जैसे को तैसे जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है।
444 हराम की कमाई हराम में गँवाई चोरी डाका आदि की कमाई का फजूल खर्च हो जाना
445 हलक से निकली खलक में पड़ी मुँह से निकली बात सारे संसार में फैल जाती है।
446 हल्दीहर्र लगे ना फिटकरी रंग चोखा ही आवे बिना कुछ खर्च किए अधिक धन कमा लेना
447 हांडी का एक ही चावल देखते हैं किसी परिवार या देश के एक या दो व्यक्ति देखने से ही पता चल जाता है कि शेष लोग कैसे होंगे।

448 हाथ कंगन को आरसी क्या जो वस्तु सामने हो उसे सिद्ध करने के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती
449 हाथ से मारे भात से न मारे किसी को चाहे हाथ से मार लो परन्तु किसी की रोजीरोटी नहीं मारनी चाहिए
450 हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और कहना कुछ और करना कुछ और
451 हाथी के पाँव में सबका पाँव बड़ों के साथ बहुतों का गुजारा हो जाता है
452 हाथी फिर बाजार कुत्ते भूकें हजार बड़े या महान लोग छोटों की शिकायत की परवाह नहीं करते
453 हारिल की लकड़ी पकड़ी सो पकड़ी हठी मनुष्य कभी अपना हठ नहीं छोड़ता
454 हिम्मतएमरदां मददएखुदा जो मनुष्य साहसी और परिश्रमी होते हैं उनकी सहायता ईश्वर करते हैं।
455 हीरे की परख जौहरी जाने गुणी व्यक्ति का मूल्य गुणवान व्यक्ति ही समझता है
456 होनहार बिरवान के होत चीकने पात होनहार के लक्षण पहले से ही दिखायी पड़ने लगते है।
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