| क्रम संख्या | लोकोक्ति | अर्थ |
| 72 | ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर | कष्ट सहने के लिए तैयार व्यक्ति को कष्ट का डर नहीं रहता। |
| 73 | ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर | काम करने पर उतारू होना |
| 74 | ओछे की प्रीत बालू की भीत | नीचों का प्रेम क्षणिक |
| 75 | ओछे की प्रीति बालू की भीति | दुष्ट का प्रेम अस्थिर होता है |
| 76 | ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती | किसी को इतनी कम चीज मिलना कि उससे उसकी तृप्ति न हो। |
| 77 | ओस चाटने से प्यास नहीं बूझती | अधिक कंजूसी से काम नहीं चलता |
| 78 | कंगाली में आटा गीला | परेशानी पर परेशानी आना |
| 79 | कबहुँ निरामिष होय न कागा | दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता |
| 80 | कबीरदास की उलटी बानी बरसे कंबल भींगे पानी | प्रकृतीविरुद्ध काम |
| 81 | कभी घी घना कभी मुट्ठी चना | जो मिल जाए उसी में संतुष्ट रहना |
| 82 | करे कोई भरे कोई | अपराध कोई करे दण्ड किसी और को मिले |
| 83 | कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली | उच्च और साधारण की तुलना कैसी |
| 84 | कहीं की ईट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा | बेमेल वस्तुओं को एक जगह एकत्र करना |
| 85 | कहे खेत की सुने खलिहान की | हुक्म कुछ और करना कुछ और |
| 86 | कहे से धोबी गधे पर नहीं चढ़ता | मूर्ख पर समझाने का असर नहीं होता |
| 87 | का वर्षा जब कृषि सुखाने | समय निकल जाने पर मदद करना व्यर्थ है |
| 88 | कागा चले हंस की चाल | गुणहीन व्यक्ति का गुणवान व्यक्ति की भांति व्यवहार करना |
| 89 | काठ की हाँड़ी बारबार नहीं चढ़ती | चालाकी से एक ही बार काम निकलता है |
| 90 | काबुल में क्या गदहे नहीं होते | अच्छे बुरे सभी जगह हैं। |
| 91 | काम का न काज का दुश्मन अनाज का | किसी मतलब का न होना |
| 92 | काम को काम सिखाता है | कोई भी काम करने से ही आता है। |
| 93 | काला अक्षर भैंस बराबर | बिल्कुल अनपढ़ व्यक्ति |
| 94 | किसी का घर जले कोई तापे | दूसरे का दुःख में देखकर अपने को सुखी मानना |
| 95 | कुत्ता भी अपनी गली में शेर होता है | अपने घर में निर्बल भी बलवान या बहादुर होता है। |
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